अश्वगंधा
(Withania somnifera (L.))
| हिन्दी नाम : असगंध/अश्वगंधा अंग्रेजी नाम : इंडियन जिन्सेंग कुल : सोलेनेसी उपयोगी भाग : जड़ पत्तियाँ | ![]() |
अश्वगंधा को असगंध के नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम विधानिया सोम्नीफेरा (Withania somnifera) है। व्यापारिक तौर पर खरीफ फसल के रूप में इसकी खेती राजस्थान, गुजरात एवं पश्चिमी मध्यप्रदेश में की जाती है। यह पौधा 1-2 मीटर लम्बा तथा शाखायुक्त होता है। इस की जडें़ माँसल तथा शाखायुक्त होती है। पत्तियाँ 10-12 से.मी. लम्बी, अण्डाकार, सवृन्त तथा एकांतर विन्यास में लगी रहती है। पुष्प 1 से.मी. आकार के हरे-पीले रंग के होते है, जो पत्तियों के कक्ष में गुच्छे के रूप में लगे रहते है। फल 5 से 6 मि.मी. चौड़े , गोलाकार, चिकने, पीले-गुलाबी रंग के होते है, जो झिल्लीनुमा बाह्य दलपुंज से ढके रहते हैं। फल मांसल बेरी होता है जिसमें असंख्य मटमैले पीले बीज होते है।
उपयोगिता
अश्वगंधा की जड़ का प्रयोग अनेक प्रकार की बीमारियों में किया जाता है। पत्तियों का उपयोग पेट के कीड़े मारने तथा फोडों को ठीक करने में किया जाता है।
आंतों की सूजन, अल्सर, गठिया की सूजन, तपेदिक, बच्चों में दुर्बलता, वृद्धावस्था में कमजोरी, तंत्रिका तंत्र की थकान, मस्तिष्क की थकान, स्मरण शक्ति का नाश, मांसपेशियों में थकान, स्वप्नदोष आदि रोगों के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है। अश्वगंधा की जडों का चूर्ण बराबर मात्रा में शहद तथा घी के साथ मिलाकर नपुंसकता तथा प्रजनन से संबंधित कमजोरी में उपयोग किया जाता है। जड़ का काढ़ा प्रसूता स्त्रियों तथा वृद्ध लोगों के लिए पौष्टिक तथा स्वास्थ्यप्रद होता है। दूध उत्पन्न करने तथा दूध बढाने वाली दवा के रूप में इसके बिलाइकंद तथा मुलहठी के साथ बनाये काढ़े को गाय के दूध के साथ स्त्रियों को दिया जाता है। दृष्टि दोष में इस की जड़ के चूर्ण को मुलहठी के चूर्ण के साथ मिलाकर आँवले के रस में लुगदी बनाकर प्रयोग किया जाता है।

